वह शहर सिर्फ एक शहर नहीं

Manushya
1 min readJan 16, 2023

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कैसे कुछ लोग हमारे लिए पूरी शहर बन जाते हैं,

कैसे उस शहर की सारी घटनाओं में हम सिर्फ उनको पाते हैं।

कुछ खराब सुन के घबरा, और अच्छा सुन के मुस्कुरा जाते हैं,

क्यों उस शहर को जाने वाली सड़कों को हम निहार आते हैं।

किसी मुसाफिर के मुंह से उस शहर का नाम सुन,

हम उस मुसाफिर को जैसे अपना मान लेते हैं,

बिना कुछ जाने भी हम उन्हें 2–4 घूमने के सुझाव दे आते हैं।

कभी उस शहर के बारे में बुरा न सुन पाते हैं,

कैसे सब पीछे छोड़ देने के बाद भी,

हम उस शहर जाने वाले रास्तों पे ही पाए जाते हैं।

क्या रखा उस शहर में अब, क्या मिलेगा वहां विचरने से,

अगर ये सोचते तो क्या ये कविता कभी लिख पाते हम?

बस है एक ऐसा शहर जिसका नाम उसके स्टेश पे नहीं,

वो बस हमारे यादों में है, इस मनगढ़ंत कविता में नहीं।

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Manushya
Manushya

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