कभी क्या भरे पेट, खाना स्वादिष्ट लगता है?
शायद भूखा रहना भी ज़रूरी है।
क्या कभी बिना थके, विश्राम से सुकून मिलता है?
शायद मेहनत करना भी ज़रूरी है।
कभी क्या खुशी में, इन आंसुओं की कोई सोचता है?
शायद गम होना भी ज़रूरी है।
क्या कभी तरक्की में, अपने किस्मत को कोई सराहता है?
शायद ठोकर खाना भी ज़रूरी है।
और कभी क्या पास रहने पे, किसी ने नजदीकी को जाना है?
शायद बिछड़ जाना भी ज़रूरी है।