Cryptic words a.k.a. शेर-o-शायरी
मैं उन अंको की तरह हूं, जिनको तुम जोड़ती हो…
मैं उन अंको की तरह हूं, जिनको तुम जोड़ती हो…
बस कोई बराबरी ना कर जाए,
तुम मेरे साथ LHS में ही जचती हो।
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ख़ुदा का दस्तूर या इन लकीरों का खेल समझू…
ख़ुदा का दस्तूर या इन लकीरों का खेल सामझू…
मिलना था तुमसे, अब अपने आप को कहां ढूंढू?
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रुकते कहां जो मुसाफिर होते हैं…
बिछड़ते कहां जो हमराही होते हैं…
मगर ठहर गया मुसाफिर उस दिन उन्हीं लम्हों में…
हमराही ने जब प्यार तौला उनके और हमारे चेहरों के।
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तेरी बातें कुछ धुंधुली धुंधुली सी याद रह गई।
चेहरे पे तेरी वह फीकी फीकी मुस्कान दिख गई।।
मैं शायद ना याद होऊंगा तुझे, मन में ये मलाल रह गई।
तुझे मैं फिर कभी मिल पाऊंगा कहीं, मेरे दिल में बस इसकी आस रह गई।।
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मैं जानता था ये वक़्त आयेगा जब भी।
जिसे सोच के हस्ते थे, वो रुलाएगा कभी।।
गलती उस मासूम की नहीं, इस वक़्त की है अभी।
जब मिलाना ना था तो हमे यूं मिलाया क्यूं तभी।।